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मुख्यपृष्ठSyllabusM.A. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर सिलेबस: पूरी जानकारी के साथ PDF DOWNLOAD करे

M.A. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर सिलेबस: पूरी जानकारी के साथ PDF DOWNLOAD करे

MGSU BIKANER जून 15, 2025 0

M.A. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर सिलेबस: पूरी जानकारी के साथ PDF DOWNLOAD करे 


एम.ए. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर का सिलेबस क्या है, और इसकी पढ़ाई से छात्रों को क्या लाभ मिल सकता है?

एम.ए. इतिहास के द्वितीय सेमेस्टर में छात्र भारतीय इतिहास के विशेष पक्षों, वैश्विक परिप्रेक्ष्य और इतिहास लेखन की गहराई को समझते हैं। इस पाठ्यक्रम में ऐसी विषय-वस्तु सम्मिलित है जो न केवल विद्यार्थियों को अनुसंधान और अकादमिक समझ के लिए तैयार करती है, बल्कि प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी सिद्ध होती है। आइए हम एम.ए. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर के सभी महत्वपूर्ण विषयों, इकाइयों और अध्ययन-क्षेत्रों की क्रमबद्ध चर्चा करें, और अंत में आपको आधिकारिक सिलेबस डाउनलोड लिंक भी प्रदान करें।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन: इसके उद्भव, विकास और स्वतंत्रता तक का कालखंड

द्वितीय सेमेस्टर में 'भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन' विषय को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से विस्तारपूर्वक पढ़ाया जाता है। इसमें 1857 की क्रांति से लेकर 1947 तक के आंदोलनों को वैज्ञानिक, राजनीतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से समझाया जाता है। छात्र यह जानने का प्रयास करते हैं कि भारतीय जनमानस कैसे धीरे-धीरे राष्ट्रीय चेतना के साथ जुड़ा और किन आंदोलनों ने स्वतंत्रता की नींव रखी।
क्या आप जानते हैं कि गांधीजी के आने से पहले भी भारत में कई बड़े आंदोलन हो चुके थे?

औपनिवेशिक शासन और उसका भारतीय समाज पर प्रभाव: एक गहन विश्लेषण

इस विषय में ब्रिटिश औपनिवेशिक नीतियों का समाज, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और धर्म पर क्या प्रभाव पड़ा — इसकी विस्तृत चर्चा की जाती है। विद्यार्थियों को यह भी समझाया जाता है कि कैसे औपनिवेशिक शासन ने भारत की परंपरागत व्यवस्थाओं को तोड़ा और नई व्यवस्थाओं को थोपा।
ब्रिटिश भूमि-राजस्व व्यवस्था से किसानों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया?

आधुनिक भारत में सुधार आंदोलन: सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से

ब्राह्मो समाज, आर्य समाज, अलिगढ़ आंदोलन, रामकृष्ण मिशन जैसे संगठनों द्वारा किए गए धार्मिक एवं सामाजिक सुधारों को इस इकाई में गहराई से पढ़ाया जाता है। इन आंदोलनों ने भारतीय समाज को पुनर्जागरण की ओर अग्रसर किया और जाति, छुआछूत तथा बाल विवाह जैसे मुद्दों पर जनचेतना फैलाने का कार्य किया।
क्या सामाजिक सुधार आंदोलन केवल हिंदू समाज तक सीमित थे या मुस्लिम समुदाय में भी समानांतर परिवर्तन हुए?

इतिहास लेखन की परंपराएं और उनके दृष्टिकोण: एक अकादमिक दृष्टि

द्वितीय सेमेस्टर के इस विषय में 'इतिहास कैसे लिखा जाता है', इसका वैज्ञानिक विश्लेषण सिखाया जाता है। इस भाग में इतिहास लेखन के प्रमुख स्रोत, उनके उपयोग, तुलनात्मक अध्ययन और इतिहासकारों के दृष्टिकोण (मार्क्सवादी, राष्ट्रवादी, उपनिवेशवादी आदि) को समझाया जाता है।
इतिहास क्या केवल घटनाओं का विवरण होता है या यह एक विश्लेषणात्मक प्रक्रिया भी है?

राजस्थान का आधुनिक इतिहास: क्षेत्रीय संघर्षों और विकास की कहानी

राजस्थान राज्य के स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान, प्रमुख क्षेत्रीय आंदोलनों, राजघरानों की भूमिका, और एकीकरण प्रक्रिया को इस विषय में विस्तार से समझाया जाता है। साथ ही, यह भी देखा जाता है कि राजस्थान में ब्रिटिश हस्तक्षेप किस रूप में था और कैसे यह क्षेत्र सांस्कृतिक व राजनीतिक रूप से जागरूक हुआ।

क्या आप जानते हैं कि राजस्थान के किन क्षेत्रों में स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी पहले भड़की थी?

शोध पद्धति (Research Methodology): इतिहास में अनुसंधान कैसे किया जाता है

इस विषय के अंतर्गत छात्रों को यह सिखाया जाता है कि एक ऐतिहासिक शोध किस प्रकार से आरंभ होता है, उसमें किन स्रोतों का उपयोग होता है और उसकी प्रामाणिकता कैसे प्रमाणित की जाती है। इसमें प्राथमिक स्रोत, द्वितीयक स्रोत, संदर्भ पुस्तकें, रिपोर्ट, फील्ड वर्क, नोट्स तैयार करना और निष्कर्ष निकालना जैसे कौशल शामिल होते हैं।
इतिहास के एक शोधकर्ता को किन नैतिक मूल्यों का पालन करना चाहिए?

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत: पुरालेख, अभिलेख, ताम्रपत्र और सिक्कों की भूमिका

हालांकि यह विषय पहली दृष्टि में पुरातन लगता है, लेकिन आधुनिक इतिहास को समझने के लिए प्राचीन स्रोतों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुरालेखों और अभिलेखों से प्राप्त जानकारी इतिहास के विभिन्न कालखंडों को सत्यापित करने का कार्य करती है। छात्र इन स्रोतों का विश्लेषण करना सीखते हैं — जैसे अशोक के अभिलेख, गुप्तकालीन ताम्रपत्र, और मुगलकालीन सिक्के।


क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे पहला लिखित अभिलेख कौन सा था?

पाठ्यक्रम के अंत में मूल्यांकन प्रणाली और परियोजना कार्य का महत्व

द्वितीय सेमेस्टर में छात्रों का मूल्यांकन प्रायोगिक कार्य, प्रेजेंटेशन, टर्म पेपर और सेमिनार से किया जाता है। यह प्रक्रिया विद्यार्थियों को केवल परीक्षा तक सीमित नहीं रखती, बल्कि उनमें शोध और अभिव्यक्ति की क्षमता को भी विकसित करती है। कई विश्वविद्यालयों में द्वितीय सेमेस्टर में एक लघु शोध परियोजना (Mini Research) भी सम्मिलित होती है।

क्या केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाने से कोई अच्छा इतिहासकार बन सकता है?

सिलेबस की संरचना और विषयों का औपचारिक क्रम

एम.ए. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर में प्रायः 4 या 5 पेपर होते हैं, जिनमें 2 अनिवार्य और शेष वैकल्पिक होते हैं। छात्र अपनी रुचि के अनुसार आधुनिक भारत, प्राचीन भारत, राजस्थान का इतिहास, इतिहास लेखन या शोध विधियों में से विषय चुन सकते हैं। परीक्षा का स्वरूप प्रायः तीन घंटे का होता है जिसमें दीर्घ उत्तरीय और लघु उत्तरीय प्रश्न पूछे जाते हैं।

आधिकारिक सिलेबस डाउनलोड लिंक

आप अपने विश्वविद्यालय (जैसे कि MGSU, Bikaner) के आधिकारिक सिलेबस को नीचे दिए गए लिंक से डाउनलोड कर सकते हैं:
👉 एम.ए. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर सिलेबस (MGSU Bikaner)

क्या यह सिलेबस प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी उपयोगी है?

बिलकुल। एम.ए. इतिहास के द्वितीय सेमेस्टर का सिलेबस न केवल शैक्षणिक दृष्टि से बल्कि UPSC, RPSC, NET/JRF, एवं अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से भी अत्यंत उपयोगी है। इसमें शामिल विषय वस्तु भारत की राजनीतिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक संरचना की गहरी समझ प्रदान करती है।

जानिए पूरी सच्चाई 

एम.ए. इतिहास द्वितीय सेमेस्टर का यह सिलेबस छात्रों को इतिहास की घटनाओं को केवल याद करने की बजाय उन्हें समझने और विश्लेषण करने की ओर प्रेरित करता है। यदि आप सचमुच इतिहास को महसूस करना चाहते हैं, तो केवल पुस्तकों तक सीमित न रहें — अभिलेखों, अनुसंधानों, और विशेषज्ञों के विचारों को भी अपनाएं। इसी से एक गंभीर और जिम्मेदार इतिहासकार का जन्म होता है।

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